उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास के साक्ष्य ऋग्वेद युग से
मिलने शुरू होते हैं। शुरुआत में आर्य सभ्यता का क्षेत्र सप्तसिंधु (अविभाजित भारत
की सात नदियों का प्रदेश)नदी था। बाद में गंगा और सरस्वती के मैदानों में कुरु, कोसल, पांचाल और काशी राज्यों का उदय
हुआ। ये क्षेत्र वैदिक सभ्यता के प्रमुख केंद्र बने। छठी सदी में गुप्त युग के पतन
के बाद कन्नौज और थानेश्वर शक्ति के नए केंद्र बनकर उभरे। इसके राजा हर्षवर्धन (606-647 ईस्वी) के अधीन उत्तर भारत का एक
बड़ा साम्राज्य था। हर्ष के समय में ही चीनी यात्री हवेन सांग भारत आया था। हर्ष की
मृत्यु के बाद उत्तर भारत पर वर्चस्व की लड़ाई में अंतिम रूप से गुर्जर-प्रतिहार
वंश विजयी रहा। नौवीं-दसवीं सदी में उनका वर्चस्व बना रहा। 1018-19 में महमूद गजनवी ने उनको पराजित
कर दिया। इसके बाद इस क्षेत्र में गहरवार वंश का प्रभुत्व रहा। इस वंश के राजा
जयचंद (1170-1193 ईस्वी) ने पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ महमूद गोरी का साथ दिया। लिहाजा 1192 ईस्वी में महमूद गोरी ने
पृथ्वीराज को पराजित किया और 1193 ईस्वी में जयचंद को हरा कर उसकी हत्या कर दी। 1203 में चंदेल वंश के राजा वीर परमल
को गोरी के सहयोगी कुतुबुद्दीन ऐबक ने हरा दिया।
1206 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली
की गद्दी पर बैठा और उसने गुलाम वंश की स्थापना की। उसके बाद खिलजी और तुगलक
शासकों ने दिल्ली सल्तनत के दायरे को बढ़ाया। वर्तमान उत्तर प्रदेश का अधिकांश
हिस्सा उनके अधीन था। उस दौरान सम्भल, कड़ा और बदायूं की रियासतें
क्षेत्रीय ताकत बनकर उभरीं।
1394 में राज्य के पूर्वी छोर पर
जौनपुर में शर्की साम्राज्य की स्थापना हुई। तुगलक शासकों से विद्रोह कर उनके एक
गर्वनर मलिक सरवर ख्वाजा जहां ने इस साम्राज्य की नींव डाली। 1506 ईस्वी में लोदी वंश के शासक
सिकंदर लोदी ने दिल्ली की जगह आगरा को अपनी राजधानी बनाया। उसके वंशज इब्राहीम
लोदी को 1526 में बाबर ने हराकर आगरा को कब्जे में कर लिया। इस तरह मुगल वंश सत्ता
के शिखर पर काबिज हुआ। अकबर का शासन उस युग में सबसे उल्लेखनीय रहा। उसकी उदारवादी
नीतियों के चलते शांति और समृद्धि का माहौल बना। इसके उलट औरंगजेब की कट्टर
नीतियों के चलते मुगल शासन को धक्का लगा। उसके समय में ही बुंदेलखंड के वीर
छत्रसाल ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया।
अवध में स्थानीय गर्वनर सादत अली खां ने 1732 में स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।
उसी दौर में रोहिलखंड में रोहिल शासकों ने भी स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर दी। 1774 में ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से
अवध के नवाब ने रोहिल शासकों को परास्त कर दिया।
1857 के गदर में राज्य के लोगों की
ऐतिहासिक भूमिका रही। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध की बेगम हजरत महल, बख्त खान, नाना साहब, मौलवी अहमदुल्ला शाह, राजा बेनी माधव सिंह, अजीमुल्ला खान समेत अनगिनत
देशभक्तों ने अंग्रेजी हुकूमत से जमकर लोहा लिया।
1858 में उत्तर-पश्चिम प्रांत से
दिल्ली डिवीजन को अलग कर दिया गया और प्रदेश की राजधानी को आगरा से इलाहाबाद
स्थानांतरित कर दिया गया। उसी साल एक नवंबर को ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से
राजनीतिक शक्ति महारानी विक्टोरिया के पास चली गई। 1877 में उत्तर-पश्चिम प्रांत के
लेफ्टिनेंट गवर्नर और अवध के चीफ कमिश्नर के पदों का विलय हो गया। उसके बाद इस
पूरे बड़े क्षेत्र को आगरा और अवध का उत्तर-पश्चिमी प्रांत कहा जाने लगा। 1902 में एक बार फिर इस नाम में
परिवर्तन हुआ और इसको आगरा और अवध का संयुक्त प्रांत कहा जाने लगा। 1937 में इसके नाम संक्षिप्तीकरण हो
गया और इसको संयुक्त प्रांत कहा जाने लगा। आजादी के ढाई साल बाद 12 जनवरी, 1950 को इस प्रांत को वर्तमान नाम
उत्तर प्रदेश मिला। जब आजाद भारत में 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ तो उत्तर
प्रदेश देश में पूर्ण राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।